Thursday, August 1, 2013

कुछ मेरे पन्ने, कुछ उसके पन्ने


 कुछ मेरे पन्ने, कुछ उसके पन्ने 

उसकी लिखावट की वोह चमक 

जो मेरे मन में दीवानगी सा पैदा करती थी 

उसके शब्दों में  ऐसे प्यार भरे लहजों का जज्बा 

मेरे  दिल को इक सुकून सा देती थी 

इन्ही सब बातों का मैं आशिके काहिल

 कुछ लिख गया ढेर से पन्ने 

 कुछ मेरे पन्ने, कुछ उसके पन्ने। 


हुआ था ऐ दिल बहार जो मुझे उस वक़्त 

न कुछ कह सका और न ही कुछ बोल सका 

दिल था मेरा एक भरा हुआ पन्ना 

जो अब मैं कही लिखते लिखते भूल गया 

कुछ मेरे पन्ने कुछ उसके पन्ने 


उसकी सुंदर सी मालाओ में वो पिरोई हुई खूबसूरत सी बात 

जो मुझे हर दफा बुलाती थी उसके पास 

आधी आधी रातों में तस्नीफी में गडोये मैंने  ऐसे पन्ने 

 कुछ मेरे पन्ने, कुछ उसके पन्ने